भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति के नाम पर किया जाना तय हुआ है । आइये जानते है, रानी कमलापति का भोपाल के लिए दिया गया योगदान ।

पूराने भोपाल में एक महल ऐसा भी है, जिसकी आधे से ज्यादा मंजिलें पानी के अंदर डूबी हुई हैं। इस महल का अपना एक वैभवशाली इतिहास है, पहले ये कभी पूरी तरह से रहने के लिए महफूज था।
जहां कई प्रकार के ऐसे साधन भी लगे थे जिससे यहां रहने वाले को पूरा आराम मिले, लेकिन फिर अचानक इस महल के एक बडे हिस्से का पानी में डूब जाना भी किसी अजूबे से कम नहीं है।
जी हां हम बात कर रहे हैं भोपाल के कमलापति महल की जिसका निर्माण आज से करीब 300 साल पहले किया गया था। वर्ष 1722 में बने इस महल से दोनों झीलों का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। 7 मंजिला इस भवन की कुछ मंजिलें पानी में डूबी हुई हैं। रानी का शाही कमरा भी पानी के भीतर है। कभी इस महल के सामने बाग हुआ करता थे, लेकिन पानी में डूबने की वजह से आज यह छोटी झील बन गई है।

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जानिये क्या खास है इस महल में…
यह महल 18वीं सदी के प्रारंभ में बनना शुरू हुए इस महल को रानी कमलापति ने बनवाया था, इसलिए इसका नाम कमलापति महल पड़ा। रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ के राजा निजाम शाह की पत्नी थीं।
सात मंजिला महल
यह लखौरी ईंटों और मिट्टी से निर्मित सात मंजिला महल है। जिसकी दो मंजिले ऊपर हैं, जबकि तालाब के भीतर इसकी पांच मंजिलें समाई हुई हैं। बताया जाता है कि इस महल के नीचे के हिस्से में भारी-भरकम पत्थरों का आधार तैयार किया गया था, ताकि यह झील के पानी में धंस न जाए।
इस खुफिया रास्ते से ही अपने महल में प्रवेश करती थी बेगम…!
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सबसे निचले हिस्से में था शाही कमरा
इस महल में शाही कमरे के ऊपर भव्य कमरा था, जहां रानी अपने परिवार के साथ बैठा करती थी। वहीं छोटी झील की तरफ सबसे निचले हिस्से में शाही कमरा था। इसके ऊपर पानी की टंकी से लगातार पानी छोड़ा जाता था, जिससे गर्मी के माैसम में भी बारिश का अहसास होता था।
इसके बाद वर्ष 1989 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया। साथ ही भोपाल राज्य के तत्कालीन चीफ कमिश्नर के आदेश पर महल के खुले परिसर में सुंदर बगीचा बनाया गया।
यह है इतिहास
देश में मुगल साम्राज्य के पतन के बाद चकला गिन्नौर में गौंड राजा निजाम शाह का राज्य था। इनकी सात रानियों में से एक कमलापति भी थीं। वे खूबसूरत होने के साथ बुद्धिमान और साहसी भी थी।
बताया जाता है निजाम शाह को धोखे से जहर देकर उसके भतीजे चैनशाह ने मार डाला। तब रानी कमलापति अपने बेटे के साथ भागकर भोपाल आ गई थी।
कई बार नाम भी बदले
समय बीतने के साथ इसके नाम भी बदलते गए। कभी इसे भोजपाल का महल तो कभी जहाज महल भी कहा जाता था।
इसकी कारण यह है कि राजा भोज के कार्यकाल 1010 से 1055 ईसवी में निर्मित बड़ी झील के बांध के ऊपर इसे बनाया गया है।
बताया जाता है कि प्राचीन काल में रात के समय महल को रोशन करने के लिए उसकी खिड़कियों और रोशनदान में मशालें जला कर रखी जाती थीं। ऐसे में इसका प्रतिबिंब बड़ी झील में जहाज की तरह नजर आता था।
रानी ने दी थी पति के कातिल को मारने की ‘सुपारी’
कहा जाता है कि दोस्त मोहम्मद खान की मदद से रानी कमलापति ने अपने पति के कातिल को मरवाया था। इसके बदले दोस्त मोहम्मद को जो धन देना था, रानी वह दे नहीं पाई। तब अपनी रियासत का कुछ हिस्सा उसे दिया गया।
ऐसे डूबोया था ये महल…
कहा जाता है कि दोस्त मोहम्मद खान ने जब रानी कमलापति को जबरदस्ती पाना चाहा तो कमलापति के बेटे नवल शाह से उसका युद्ध हुआ। यह युद्ध लालघाटी के पास हुआ था। उसमें नवलशाह मारा गया।यह लड़ाई जिस जगह हुई वह पूरी खून से लाल हो गई थी। यह जगह अब लालघाटी के नाम से जानी जाती है। लड़ाई में सिर्फ दो लोग बचे जिन्होंने रानी को आगाह करने के लिए मनुआभान की पहाड़ी से काला धुंआ किया।
कहा जाता है कि निराशा के इस काले धुंए को देख रानी ने तुरंत बांध का सकरा रास्ता खुलवा दिया, जिससे बड़े तालाब का पानी रिस कर दूसरी तरफ आने लगा। माना जाता है कि रानी ने ऐसा करके छोटे तालाब की ओर वाले भाग को पानी से डुबो दिया ताकि उसके शरीर को कोई पा न सके। उसी के बाद महल की नीचे की मंजिल पानी में डूबी, जिसमें रानी का शाही कमरा भी था। यह रिसा हुआ पानी ही आज के समय का छोटा तालाब है। इस पानी में रानी ने सारी दौलत, सोने के आभूषण और कीमती सामान गिरवा दिए और इसी छोटे से तालाब में जल समाधि ले ली।